tag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post6304886720233641625..comments2023-09-07T14:15:12.897+05:30Comments on सम्यक् भारत Samyak Bharat: भारतीय भाषाएं – एक विस्मृत विनाशराहुल देव Rahul Devhttp://www.blogger.com/profile/11015122468654916646noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-39179021952349801642011-11-04T00:30:56.197+05:302011-11-04T00:30:56.197+05:30यह विषय तो अपना भी रहा, चिन्ता भी…यह विषय तो अपना भी रहा, चिन्ता भी…चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-68048407385706865252010-02-01T13:59:50.008+05:302010-02-01T13:59:50.008+05:30धन्यवाद अभिषेक, यह सैनिकों की युद्ध वाली पोशाक की ...धन्यवाद अभिषेक, यह सैनिकों की युद्ध वाली पोशाक की उपमा बहुत बढ़िया है। अंग्रेजी में इसके लिए सही शब्द है camouflage। हम इसपर अभियान छेड़ने की तैयारी कर रहे हैं। आशा है आपका साथ रहेगा।राहुल देव Rahul Devhttps://www.blogger.com/profile/11015122468654916646noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-13079211035241122092010-02-01T09:52:57.693+05:302010-02-01T09:52:57.693+05:30इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.abhishek pandeyhttps://www.blogger.com/profile/00988981991276163386noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-7187386275932197782010-02-01T09:52:07.111+05:302010-02-01T09:52:07.111+05:30एक मार्क्सवादी विचारक ने कहा है कि '' संकट...एक मार्क्सवादी विचारक ने कहा है कि '' संकट यदि आर्थिक संकट है या सत्ता का संकट है तो सत्ताए उसे भी सांस्कृतिक संकट में बदल देती है। ''<br />अमेरिका के बजट का चौथा हिस्सा कल्चरल इकोनोमी का है । अमेरिकी कहते है कि अब हम किसी मुल्क में तोप लेकर नही घुसते है । हम अब सिर्फ़ अपनी संस्कृति ले जाते है , भाषा ले जाते है । और उस पर भारतीय मीडिया , पाश्चात्य सांस्कृतिक उद्योग को संभावना में बदल रहा है । भारत की सारी संभावनाए सिर के बल खड़ी है । <br />भारतीय अख़बारों में अमेरिका की खबरें मुख्य पृष्ट पर छपनी शुरू हो चुकी है । इंतजार कीजिए ,शीघ्र ही अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की खबरें ऐसी छपेंगी जैसे आप को ही वोट देने जाना है । यह अनौपचारिक साम्राज्यवाद का सबसे धूर्त और खतरनाक उदाहरण है ।<br />आपने सैनिकों की खंदकें देखी होंगी , उनकी पोशाकें देखी होंगी । उनकी पोशाकें फूल से मिलती है , पत्तों से मिलती है , मिटटी में वे बैठे रहते हैं , कभी कभी पेडो की पत्तियां भी खोस लेते है । क्या यह एक सैनिक का प्रकृति प्रेमी हो जाना है । बिल्कुल नहीं , इसका एक मात्र मकसद यह है कि दुश्मन उसे देख न सके और वह दुश्मन को लाश में तब्दील कर दे । अमेरिका का सांस्कृतिक आतंकवाद भी ठीक इसी प्रकार का है । कुछ ही समय में केवल दो भाषा होगी , एक मात्रीभाषा और एक इंग्लिश ।<br /><br />मीडिया ने समाज को बाँटने का कार्य किया है । जो मीडिया विचार बेचने का कार्य करता था अब वह बस्तु बेंचने का कार्य करता है । केवल सी.एन.ई.बी. न्यूज़ और एन.डी.टी.वी. समाचार बेंचते है । बाकि सब क्या बेचते है मालूम नही !abhishek pandeyhttps://www.blogger.com/profile/00988981991276163386noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-59544291081471537552010-02-01T09:51:16.828+05:302010-02-01T09:51:16.828+05:30इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.abhishek pandeyhttps://www.blogger.com/profile/00988981991276163386noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-34792663253555915092010-02-01T09:48:14.674+05:302010-02-01T09:48:14.674+05:30इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.abhishek pandeyhttps://www.blogger.com/profile/00988981991276163386noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-49662132804542929742010-02-01T09:40:36.081+05:302010-02-01T09:40:36.081+05:30इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.abhishek pandeyhttps://www.blogger.com/profile/00988981991276163386noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-73156960902778718662010-01-30T09:49:57.656+05:302010-01-30T09:49:57.656+05:30राहुल जी, आपकी चिन्ता बहुत से लोगों की चिन्ता है। ...राहुल जी, आपकी चिन्ता बहुत से लोगों की चिन्ता है। किन्तु भाषा के सम्बन्ध में भारत में लोग किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिये गये है या हो गये हैं। इसके वावजूद मैं हिन्दी भाषा के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आशान्वित हूँ। यह उज्ज्वल भविष्य कोई ब्रह्मरेख नहीं है जो यों ही अवश्यमेव प्रकट होगा; इसके लिये प्रयत्न करने पड़ेंगे; करते रहने पड़ेगे। बुद्धिजीवी वर्ग को भारतीय भाषाओं के हित में और मुखर होना पड़ेगा। <br /><br />अन्तरजाल, यूनिकोड, मशीनी ट्रान्सलेशन आदि के युग में संसार की सभी भाषाओं के सामने संकट से अधिक सुअवसर आया हुआ है। मुझे तो लगता है कि अंग्रेजी के श्रेष्ठता के लिये जितने कारण दिये जाते रहे हैं वे अब फीके पड़ गये हैं या पड़ जायेंगे। सभी भाषाओं में ज्ञान का भण्डार मिलेगा। इसके लिये बहुत कम प्रयत्न की जरूरत है।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-42542797818104554432010-01-30T00:18:54.421+05:302010-01-30T00:18:54.421+05:30राहुलजी,
विकास की लपकागीरी में हर जड़ ही खोद दी ग...राहुलजी,<br /><br />विकास की लपकागीरी में हर जड़ ही खोद दी गई है.....समूल नाश का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए 'बाजारू ही-मैनों' के बीच 'प्रायोजक' बनने की मारकाट मची है.....किसी के साथ खादी का हाथ है, किसी के साथ वर्दी का और किसी के साथ बाबुओं की लाबी. बात यहीं तक होती तो किसी जेपी की उपज की उम्मीद बची रहती.....लेकिन यहाँ किस किस को रोयें......हर आम आदमी खुद को नहीं तो अगली पीढ़ी को खास बनाने पर तुला है....खुद को रोज शमशान में जिन्दा दफ़न करने की लत पड़ गई है......तो जुबान और भाषा की फिक्र कौन करे. <br /><br />अगले चार दशक की समाप्ति पर जो फिल्म आपने बनाई है.....वो भूतिया लगती.....लेकिन आजकल कथित विज्ञानी-विकसित-आधुनिक भाषा मर्मज्ञ, विनाश के प्रति इतने आश्वस्त हैं कि आपकी डरावनी फिल्म को भी पचा जायेगे..डकार भी नहीं लेंगे.<br /><br />पर आपने फिर भी वो कहने की हिम्मत की है जिसे कोई सुनना नहीं चाहता....आपने जिस भाषा में लिखा, उसे पढ़ने वालों की समाज में कोई इज्जत नहीं करता...क्योंकि वो भूतकाल के कंकाल मान लिए गए हैं. <br /><br />फिर भी मैं उम्मीद नहीं छोड़ना चाहता.....पहली किरण आप ही है....राजाओं की आंग्ल भाषा पर अपना अधिकार स्थापित करने बाद भी, बाज़ार के ब्रांडेड मीडिया घरानों में दबदबा बनाने के बाद भी...खुद को पिछड़े-पुरातन जगत में ले आये...आज, आपको हिंदी यानि भारतीय भाषा का माना जाता है.....अब आप ब्रांडेड नहीं हैं .....लेकिन भारतीय हैं.....और हमें भारतीय बनाए रखने की कोशिश भी कर रहे हैं....बिना इस डर के कि अगर आपने अद्यतन-विकसित-प्रायोजित मित्रों की ज्यादा आलोचना की तो जात-बहार भी हो सकते हैं.आओ बात करें .......!https://www.blogger.com/profile/05084026675434792844noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8546801606266321558.post-7866698926258899962010-01-29T23:49:31.536+05:302010-01-29T23:49:31.536+05:30होना तो चाहिए परन्तु होगा नहीं। वैसे बहुत हद तक दो...होना तो चाहिए परन्तु होगा नहीं। वैसे बहुत हद तक दोष हमारा व हमारी हिन्दी पाठ्य पुस्तकें बनाने वालों का भी है, पुस्तकें बेहद अपठनीय बनाई जाती हैं। यदि हमारी पुस्तकें बच्चों या पाठक को बाँध न सकें तो वे इन्हें केवल मजबूरी में ही पढ़ेंगे। वैसे अब लगता नहीं कि कोई समाधान बचा है सिवाय एक असम्भव आशा के कि कई महान लेखक भारतीय भाषाओं में महान व रोचक ग्रन्थ लिख जाएँ और उनके अनुवाद पर पाबन्दी लगी हो, परन्तु फिर भी लोग उनके बारे में जान जाएँ और उन्हें पढ़ना चाहें।<br />वैसे यह समस्या सारे संसार में है। हर वर्ष न जाने कितनी बोलियाँ लुप्त होती जा रही हैं।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.com