मंगलवार, 26 जनवरी 2010

चन्द भाषा संकेत



नीचे दिल्ली और गुड़गाँव के उच्च वर्गीय इलाकों में बदलते भाषा प्रयोग और बदलती भाषा सोच के कुछ नमूने हैं। साथ में शायद भविष्य के भाषा प्रयोग की दिशाएं भी झलक रही हैं। एक में जय माता दी लिखा है, पर अंग्रेजी में, हर चीज की तरह और दूसरे में जय माँ हिन्दी में और बाकी सूचना अंग्रेजी में। भाषा का धार्मिक भावों से मौजूदा और बदलते संबंधों दोनों का संकेत इसमें है।
इनके बीच दो अलग तरह के चित्र हैं। एक है प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक सर मार्क टल्ली के नई दिल्ली, निज़ामुद्दीन के घर के नाम पट का। यह है एक अंग्रेज भारत प्रेमी के भारत और भारतीय भाषा प्रेम का उदाहरण। कितने ऐसे उदाहरण हम अपने आसपास पाते हैं?
दूसरी तस्वीर है सरवांटिस इंस्टीट्यूट यानी स्पेन के नई दिल्ली में सांस्कृतिक केन्द्र के निदेशक आॉस्कर पुजोल की। उनके सामने रखा कप एक विश्व पुस्तक मेले से उन्होने लिया था। अच्छे अच्छे प्रेरक या रोचक वाक्यों वाले अनन्त ऐसे कप बाज़ार में मिलते हैं। कितनों की इबारत हिन्दी या किसी भारतीय भाषा में होती है? बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से संस्कृत में पीएचडी पुजोल भी घोर हिन्दी प्रेमी हैं।


8 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है, नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएँ.

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

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  3. प्रिय बन्धु
    > भारत पूरी क्षमता, योग्यता, संरचनात्मकता से संपन्न है.
    >
    > भारतीय आकाशमंडल ऐसे अनेकानेक जगमगाते हुए सितारे हैं, जो पूरे विश्व को अपने
    > ज्ञान और संरचनात्मकता से जगमगा रहे हैं. भारत का प्राचीन इतिहास हमारे सिर को
    > गौरव से ऊँचा कर देता है. हमारे देश की गाथाएँ हमें ईमानदारी, सदाशयता,
    > आत्मविश्वास, समर्पण की भावनाओं से ओतप्रोत करती हैं, ताकि हम अपने लक्ष्य को
    > प्राप्त कर सकें और देश की शान को बढा सकें. गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं.
    >
    > हमारी कामना है कि-
    >
    > स्वतंत्रता का जश्न मनाएँ, मिलकर हम सब आज
    > हों पूरे संकल्प हमारे, मधुरिम बने समाज.
    >
    > *'शोध दिशा' का दिसंबर २००९ अंक जो माँ को समर्पित है*. www.*
    >
    > hindisahityaniketan.com पर पोस्ट कर
    >
    > दिया गया है.*
    > *आप उसका भी आनंद ले सकते हैं. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी, ताकि उसे
    > आगामी अंक में छापा जा सके. *
    >
    > *डा. गिरिराज शरण अग्रवाल*
    >
    > * **डा. मीना अग्रवाल*
    >
    > संपादक ‘शोध दिशा’
    > --

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  4. एक ज़रूरी लेकिन अब तक सिर्फ़ नारेबाज़ी तक सीमित रहे मुद्दे पर गंभीर विमर्श छेड़ने के लिए आभार.

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  5. मैं कई ऐसे धनपशुओं को जानता हूं जिनके घर में अंग्रेजी कोई नहीं जानता लेकिन उनके ड्राइंग रूम में अखबार अंग्रेजी का सजा होता है। वैसे भी जय माता दी को अंग्रेजी में लिखने या लिखवाने वाले की मनोदशा समझी जा सकती है लेकिन भाषा का मुद्दा है बड़ा पेचीदा।

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