३ फरवरी, 2010, जागरण की खबर।
पिछली जुलाई में मायावती सरकार ने सारे प्राथमिक स्कूलों में कक्षा १ से अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू करने के आदेश दे दिए थे। माध्यमिक विद्यालयों में अंग्रेजी को माध्यम बनाने के लिए अब दशकों पुरानी मान्यता नीति को बदला जाएगा।
उत्तर प्रदेश के नौनिहालों को बधाई दीजिए। उनके स्वर्णिम भविष्य का राजपथ तैयार करने के आदेश हो गए हैं।
इस देश राज्य शिक्षा मंत्रियों, सचिवों, मुख्यमंत्रियों को कौन समझाएगा कि अपने देसी पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश में पले-बढ़े बच्चों पर एक अल्प परिचित, पराए परिवेश और संस्कार वाली भाषा लाद कर वह उनके बौद्धिक और शैक्षिक विकास को कुंठित कर रहे हैं। सारी दुनिया के शिक्षाविद इस पर एकमत हैं, युनेस्को भी।
नई चीजों, विषयों को, नई भाषा को भी ठीक से समझने और सीखने का सबसे अच्छा माध्यम मातृभाषा ही है, यह ताजा स्नायुशास्त्रीय शोध यानी neuroscientific research भी बताती है। लेकिन अंग्रेजी के मूर्खतापूर्ण अंधे मोह में फंसा यह देश अपनी नई पीढ़ियों की बौद्धिक क्षमताओं के साथ खिलवाड़ करने में तो लगा ही है ऐसे सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक विभाजनों को भी बढ़ा रहा है जिसका असर कुछ सालों में ही दिखने लगेगा उन्हें भी जिन्हें आज उसकी आहटें नहीं सुनाई देतीं।
कृपया देश के सबसे सम्मानित आर्थिक पत्रकार स्वामीनाथन एस ऐयर का लेख पढ़िए पिछले रविवार के टाइम्स ऑफ इंडिया में। उसका शीर्षक है - Don't teach your kids English in class 1.
Please please read it. It is available on the net.
बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
don't teach ....angreji me chhpa hai
जवाब देंहटाएंisi liye angreji ka virodh hua hai
ya to sari shiksha ek see ho tb yh bat kho
kya aap ke bchche srkari school me pdhte hai ydi nhi to fir aap kyonese prshn krte hai aap ko ye bat khne ka kya hk hai aap thekedar kyon bnte hain
kya aap ko is ke paise milte hain
dr.vedvyathit@gmail.com
swikriti ke bad kyon dikhayege pya prde kuchh pkayenge schchai ughadi hai sb ki pyari hai yhi to midiya hai jo bhut kuchh chhupata hai hr bat ke arth lga kr btata hai
जवाब देंहटाएंजिस भाषा में आप कल्पना न कर सकें,सपने न ले सकें उस भाषा में
जवाब देंहटाएंअपने बच्चे को शिक्षा देने का मतलब है, बच्चे की कल्पनाशीलता और सपनों को अवरुद्ध करना ...
राहुल जी,
जवाब देंहटाएंअब बुद्धिजीवियों को चुप्पी तोड़नी पड़ेगी नहीं तो देश का बहुत बड़ा अनर्थ होने जा रहा है। उत्तरप्रदेश का यह कदम बहुत प्रतिगामी और घातक होगा।
इसके विपरीत करना यह चाहिये था कि स्कूल-कॉलेज कोई भी माध्यम अपनाने के लिये स्वतंत्र हों किन्तु उन्हें अपनी भाषा में निम्नलिखित बातों के ज्ञान की परीक्षा की जाय-
* क्या वे हिन्दी भाषा का सामान्य ज्ञान रखते हैं?
* क्या वे अपने ज्ञान को हिन्दी में 'आम जनता' के समक्ष रखने की क्षमता रखते हैं?
* क्या उन्हें देसी भाषा के पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान है ताकि अपने ज्ञान को वे आम जनता की भाषा में लिख/बोल सकें?
सरकार में बैठे 'चिन्तकों' से निवेदन है कि वे इस बात को समझें कि इस निर्णय से हम भविष्य में अपनी भाषा को सभी ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनाने के लक्ष्य से पीछे चले जायेंगे। इसका अर्थ यह होगा कि एक डॉक्टर से मिलने के लिये मरीज को भी अंग्रेजी का ज्ञाता होना चाहिये (डॉक्टर को तो होना ही चाहिये।)। इसका अर्थ है कि मजदूर-किसान को अंग्रेजी सीखनी है, न केवल अधिकारी, कर्मचारी और पटवारी को। यानी बिना मेहनत के और प्रभावी ढ़ंग से विभिन्न समूहों में बातचीत का रास्ता तंग किया जा रहा है।
पिछले दिनों आंध्र प्रदेश के एक जिले में दो बच्चों के गले में एक तख्ती पर ये लिख कर टांग दिया गया था कि " मैं तेलगु नही बोलूँगा ". ये सजा उन बच्चों को अंग्रेजी नही बोलने की मिली थी.
जवाब देंहटाएंये हक़ीकत है कि अंग्रेजी पूरी दुनिया कि ज़बान बन चुकी है. चीन और जापान ने इस भाषा को तहरीज़ नही दी. अस्मिता के नाम पर अपनी भाषा से चिपके रहे और आई. टी. कि दुनिया में सालों-साल पीछे रह गए. लेकिन अंग्रेजी की अपनी जगह है और मातृभाषा की अपनी जगह. उम्मीद है कि अनुवांशिक कविओं को भी ये बात समझ में आएगी.
pandeyabhishek111@gmail.com
महोदय मैं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्व विधालय का छात्र हूँ इस कारण आपको कई बार सुनने का मौका मिला और हर बार आपने हिंदी पर जोर दिया पर पल भर के लिए तो अच्छा लगता फिर नौकरी कि चिंता सताने लगती है अंग्रेजी आती नही है अंग्रेजी न आने के कारण जब भी अपने आप को कमजोर महसूस करता हूँ तो आपको याद करता हूँ तो आत्मबल मिलता है
जवाब देंहटाएंRahul ji namaskar ....!
जवाब देंहटाएंkuchh dino purv aapne meri news ko aapne MAHAKHABER me chalayai (khabar bante bharat ki, is story ko Jyoti Mam ne cover kiya tha)thi....,
plz visit on my blog....
aapke margdarshan ka mujhe intzar rahega......
Rajeev Gupta
vision2020rajeev@gmail.com
वैसे सच्चाई यही रही है कि कमाई अंग्रेजी से ही होती है।
जवाब देंहटाएंपरन्तु अब कुछ कुछ बदल रहा है
पर बदलते हुए को भी दलदल में
दलदलाने के प्रयास चालू।
यही तो है भाषाई गुलामी साहब, अंग्रेज गए पर उन्हें यह पता था की यह देश बहुत जल्दी तरक्की करेगा इसे रोकने का एक ही उपाय था की इनकी सोचने की क्षमता हे ख़तम कर दो, और ऐसा संभव था की इनके ऊपर अपनी भाषा थोप दो , आज देश का विकास होने में अगर हमारा पूरा देश एक साथ हो जाये तो ऐसी की तैसी यूरोपियन की, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता क्योकि बड़े स्तर पर बुद्धिजीवी अंग्रेजी न जानने से आम आदमी बनकर रह गए है .. आम आदमी ......?
जवाब देंहटाएंसर मैं आपका लेख अपनी पत्रिका "राष्ट्रीय बेसहारा जन" में प्रकाशित कर रहा हूं जिससे पत्रिका के पाठक भी मात्र भाषा की मज़बूती को समझ सके ।
जवाब देंहटाएंआपसे प्रकाशन की अनुमति हेतु
आपका शिष्य...
अखिलेश कुमार पाठक
अमर भारती मीडिया ग्रुप
दिल्ली,
मेल,akhileshnews@gmail.com