‘एक बार की बात है…’
‘एक बार की बात है….’
संसार की हर भाषा, देश, सभ्यता में बच्चों की सपनीली जादुई दुनिया और कल्पना जगत की शुरुआत इन शब्दों से होती है। इन शब्दों से द्वार खुलते हैं उस उत्सुकता के जिसके माध्यम से हर बच्चे का अपने समाज, इतिहास, पुराण, शास्त्र, लोक और अपनी सांस्कृतिक परंपरा, संस्कारों, पर्वों, रीति रिवाज़ों से सहज और गहरा परिचय होता है। दादा-दादी, नाना-नानी, माँ-पिता, बुज़ुर्गों से सुनी हुई ये कहानियाँ बाल चेतना में बीज के रूप में गहरे बैठ जाती हैं। और यूँ समाज का सांस्कृतिक महाख्यान इन बाल स्मृतियों के रूप में जीवन भर पीढ़ी दर पीढ़ी जीवन्त बना रहता है, परंपरा को आगे ले जाता रहता है।
लेकिन इस हजारों वर्ष पुरानी परंपरा को आधुनिकीकरण और उसके सामाजिक प्रभाव ने एक दो पीढ़ियों में ही समाप्त कर दिया है। संयुक्त परिवार अब अपवाद हैं। दादी-नानी की कहानियाँ भी कम से कम शहरों में लगभग कालकवलित हो चुकी हैँ। आज के बच्चों के पास अपनी राष्ट्रीय सभ्यता-सम्पदा, जातीय स्मृतियों, सांस्कृतिक आत्मबोध से जुड़ने, उसे प्राप्त करने के लिए कोई सहज साधन उपलब्ध नहीं। जो अब सर्वत्र उपलब्ध है वह मोबाइल-इंटरनेट की ऐसी महामायावी दुनिया है जो उसके चित्त का नित्य हरण कर उसे जीवन के महाभारत में कौरव महारथियों से घिरे अभिमन्यु की नियति पर छोड़ देती है।
इसलिए हेमन्त शर्मा की ‘एकदा भारतवर्षे…’ की शुरुआती कहानियों को पढ़ने के बाद ही विचार कौँधा कि काश मेरे बच्चे, वृहत्तर परिवार-मित्रों के बच्चे भी इसे पढ़ते। लेकिन जानता था कि अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़े ये शहरी बच्चे नहीं पढ़ेंगे। इसलिए साथ ही यह विचार आया कि मैं खुद इन कहानियों को अपनी आवाज़ में पढ़ कर अपने मित्रों, उनके बच्चों को भेज सकता हूँ। भेजूँगा। इसलिए कि चाहता हूँ कि वे रुचि से हिंदी पढ़ते हों या न पढ़ते हों उन्हें इस पुस्तक और इसकी कहानियों से वंचित नहीं रहना चाहिए।
‘एकदा भारतवर्षे…’ शीर्षक स्व. अमृतलाल नागर के अद्वितीय पौराणिक उपन्यास ‘एकदा नैमिषारण्ये…’ की ही प्रतिध्वनि है, प्रेरित है। लेकिन वह नागर जी के भारतीय सभ्यता के महाभारतकालीन इतिहास की खोज में गंभीर पौराणिक, शास्त्रीय और ऐतिहासिक शोध पर आधारित अद्बुत उपन्यास है। यह पुस्तक कथा संग्रह है जिन्हें अपने पुराणों, उपनिषदों, जातक कथाओं, बुद्ध चरित, कुछ विदेशी चरित्रों की कहानियों तथा मुख्यतः भारत के दो महानतम महाख्यानों रामायण और महाभारत की मूल संस्कृत सहित दूसरी भारतीय भाषाओं में रचित कथाओं से लिया गया है। ये दो महाकथाएँ भारतीय सभ्यता के महानद के दो तट हैं जिनके बीच कम से कम ४००० साल से से वह अजस्र और अप्रतिहत प्रवाहित होती आई है।
हजारों साल पहले आज के सीतापुर के पास नैमिषारण्य के चक्रतीर्थ में ऋषि शौनक ने ८८,००० ऋषियों के साथ १२ वर्ष का ज्ञान सत्र किया था। ब्रह्मा ने इस ज्ञान सत्र के उचित स्थान को खोजने के लिए शौनक को एक चक्र दिया था इस निर्देश के साथ कि जहाँ इसकी नेमि यानी बाहरी परिधि स्वयं ही धरती पर गिर पड़े वही जगह सही होगी। शौनक ८८,००० ऋषिओं के साथ सारे देश में घूमे तब आज जो स्थान चक्रतीर्थ सरोवर का है वहाँ वह नेमि गिरी और वह अरण्य (वन) नैमिषारण्य तीर्थ बन गया।
‘एकदा भारतवर्षे…’ वैसा ज्ञान सत्र तो नहीं है, वैसा कुछ भी अब असंभव है, लेकिन हेमन्त ने उन ऋषियों की जगह हमारे आर्ष महापुरुषों तथा ग्रंथों के कथानकों से चुन चुन कर ऐसे कथा रूपी ज्ञान कण एकत्र किए हैं जो आज इस देश काल में हमारे और हमारी अगली पीढ़ियों के जीवन पथ को अपनी विराट विरासत की विभूतियों से परिचन के माध्यम से आलोकित, आत्मबोध-युक्त कर सकते हैं, हमारे सामूहिक चित्त को अपनी जड़ों से जोड़ सकते हैं।
‘एकदा..’ की सफलता इसमें हैं कि वह पाठक में वही उत्कंठा जगाती है जो हमारे बचपन की स्मृतियों में एक बार की बात है… से शुरु होने वाले जादुई अनुभवों के संसार के दरवाज़े खोलती थी। संसार की हर सभ्यता, संस्कृति का रस उसकी कहानियों, किस्सों, आख्यानों, परीकरथाओं से लेकर महाकाव्यात्मक महाख्यानों के माध्यम से उन्हें सदी दर सदी जीवन्त और प्रवाहमान बनाए रखता है। अपनी भूमिका में हेमन्त शर्मा भारत ही नहीं वैश्विक सभ्यताओं की इसी कथा परेपरा का पूरा रोचक और विस्तृत इतिहास हमारे सामने रखते हैं।
अपनी निपट बनारसी अड़ी की अक्सर अमर्यादित हो जाने वाली बहसों, शाव्दिक झड़पों को शांत करने के विचार से चलते फिरते, मोबाइल पर लिखी गई ये बोध-कथाएं कब वैदिक साहित्य से शुरु होकर पुराणों के आख्यानों, रामायण, महाभारत, भागवत में गोते लगाते हुए धीरे से बुद्ध चरित के अपार सारवान जातक कथा सागर में तैरने लगती हैं यह पता ही नहीं चलता। लेकिन इस प्रकार विविध स्रोतों, शास्त्रों तथा लोकसाहित्य, वेद काल से लेकर समकालीन भारतीय इतिहास की विभूतियों, मध्यकाल के संतों के रोचक पक्षों, संस्मरणों, घटनाओं से हमारा बोधपूर्ण परिचिय करवाती हैं। हेमन्त ने इन पुरा कथाओं के अपने मौलिक, आधुनिक कथन को समकालीन सामाजिक यथार्थों के संदर्भों के भीतर रखते हुए सनातन और समकालीन के बीच एक सुन्दर पुल भी बनाया है।
जानने वाले जानते हैं कि हेमन्त शर्मा एक अदम्य और विकट किस्सागो हैं। वह पत्रकार बेहतर हैं या किस्सागो यह तय करना कठिन है। कहानियाँ, किस्से, संस्मरण जैसे उनके भीरत निरन्तर बहते रहते हैं मौके की तलाश में कि कब सुनने वाले जुटें और हम प्रकट हों। यह किस्सागोई संग और प्रसंग के अनुकूल परम शालीन, शास्त्रीय से लेकर लोकविनोद की शुद्ध बनारसी भदेस शैली के बीच सहज संचरण करती रहती है। लेकिन इस काशीपुत्र ने अपने पिता से प्राप्त ज्ञान, संस्कार, शैली और विरासत को निभाते हुए यह जो पुस्तक पुष्प हिंदी को दिया है वह पिछली प्रशंसित पुस्तकों की ही तरह शुभ और सारवान है। सराहा जाएगा। इन कहानियों को सिर्फ पढ़ा ही नहीं अन्य माध्यमों से भी अगली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाना चाहिए।
राहुल देव
२७ सितंबर, २०२०
(हिंदी इंडिया टुडे के लिखी गई समीक्षा)
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